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किंग ऑफ कप्स

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अपराईट भविष्य कथन का महत्व



दयालुता, इच्छा, आनंद, भावनात्मक रूप से संतुलित, दयालु, कूटनीतिक

राजा नहुष के जैसे आपके अंदर दयालुता का गुण है।आपकी इच्छा ही है की जितने लोग आपके सम्पर्क में आए, उनके जीवन में आनंद निर्माण करे। क्योंकि आप भावनात्मक रूप से संतुलित है। दयालु है। कूटनीतिक तज्ञ है, जिससे सबका फायदा होता है। ठीक भगवान कृष्ण के जैसा उनकी कूटनीती किसी का नुकसान नहीं होने देती थी।

रिवर्स भविष्य कथन



डबल-डीलर, स्कैंडल, चालाक, हिंसक, आत्म-करुणा, आंतरिक भावनाएं, मनोदशा, भावनात्मक रूप से जोड़ तोड़

सावधान आप डबल-डीलर या किसी स्कैंडल के अंदर फस सकते हैं।क्योंकि आप अच्छे इंसान है।ना आप चालाक हो और ना हिंसक। आपके अंदर है तो वो है आत्म-करुणा, आंतरिक भावनाएं और एक अच्छी मनोदशा। भावनात्मक रूप से जोड़ तोड़ करनी पडे तो भी चलेगा किंतु गलत मित्रों की संगत छोड दीजिए।

युरोपिय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु



राजा पीले और गहरे भूरे रंग के कपड़े में है। वह अपने दाहिने हाथ में प्याला और अपने बाएं हाथ में छड़ी पकड़े हुए है। राजा के गले में सुनहरी मछली है। बाईं ओर एक जीवित मछली है और दाईं ओर एक छोटा जहाज है। कुर्सी पानी पर तैर रही है।

प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड अभ्यास वस्तु


एक शक्तिशाली राजा अपने दरबार में बैठा है। राजस्थानी असामयिक लाल पत्थरों के साथ उनका दरबार बहुत विशेष प्रकार का है।

वह राजा नहुष है। राजा नहुष बड़ा शूरवीर था। इंद्र की अनुपस्थिति में, राजा नहुष को स्वर्ग पर शासन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। बाद में, वह इंद्र की पत्नी, इंद्राणी, 'सची' की ओर आकर्षित हो गया। सची ने अपने गुरु से सलाह मांगी। वे उसे सलाह देते हैं कि नहुष को सप्तऋषि द्वारा पालखी में ले जाने के लिए कहें। पालखी ढोते समय उसने अगस्ती मुनि को लात मारी। मुनि अगस्ती ने नहुष राजा को अजगर बनने का श्राप दिया।

नहुष यति, ययाति, सम्यति, अयाति, वायति, कृति के पिता थे।

ययाति यदु, तुर्वसु, द्रुह्य, अनु, पुरु के पिता थे।

तत पश्चात महाभारत के पात्रों ने पृथ्वी पर जन्म लिया।

(राजा नहुष की विस्तृत कहानी )

भगवान् विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए। ब्रह्माजी से अत्रि, अत्रि से चन्द्रमा, चन्द्रमा से बुध और बुध से इलानन्दन पुरूरवा का जन्म हुआ। पुरूरवा से आयु, आयु से राजा नहुष और नहुष के छः पुत्रों याति ययाति सयाति अयाति वियाति तथा कृति उत्पन्न हुए। नहुष ने स्वर्ग पर भी राज किया था।

नहुष प्रसिद्ध चंद्रवंशी राजा पुरुरवा का पौत्र था। वृत्तासुर का वध करने के कारण इन्द्र को ब्रह्महत्या का दोष लगा और वे इस महादोष के कारण स्वर्ग छोड़कर किसी अज्ञात स्थान में जा छुपे। इन्द्रासन ख़ाली न रहने पाये इसलिये देवताओं ने मिलकर पृथ्वी के धर्मात्मा राजा नहुष को इन्द्र के पद पर आसीन कर दिया। नहुष अब समस्त देवता, ऋषि और गन्धर्वों से शक्ति प्राप्त कर स्वर्ग का भोग करने लगे। अकस्मात् एक दिन उनकी दृष्टि इन्द्र की साध्वी पत्नी शची पर पड़ी। शची को देखते ही वे कामान्ध हो उठे और उसे प्राप्त करने का हर सम्भव प्रयत्न करने लगे।

जब शची को नहुष की बुरी नीयत का आभास हुआ तो वह भयभीत होकर देव-गुरु बृहस्पति के शरण में जा पहुँची और नहुष की कामेच्छा के विषय में बताते हुये कहा, “हे गुरुदेव! अब आप ही मेरे सतीत्व की रक्षा करें।” गुरु बृहस्पति ने सान्त्वना दी, “हे इन्द्राणी! तुम चिन्ता न करो। यहाँ मेरे पास रह कर तुम सभी प्रकार से सुरक्षित हो।”

इस प्रकार शची गुरुदेव के पास रहने लगी और बृहस्पति इन्द्र की खोज करवाने लगे। अन्त में अग्निदेव ने एक कमल की नाल में सूक्ष्म रूप धारण करके छुपे हुये इन्द्र को खोज निकाला और उन्हें देवगुरु बृहस्पति के पास ले आये। इन्द्र पर लगे ब्रह्महत्या के दोष के निवारणार्थ देव-गुरु बृहस्पति ने उनसे अश्वमेघ यज्ञ करवाया। उस यज्ञ से इन्द्र पर लगा ब्रह्महत्या का दोष चार भागों में बँट गया। देवी अशोकसुन्दरी के पति भगवान शिव और माता पार्वती के सबसे बड़े दामाद हैं और देवी ज्योति , गणेशजी , भगवान कार्तिकेय ,भगवान अय्यपा और देवी मनसा के बहनोई हैं । ऋषि जरत्कारू के साढू हैं और आस्तिक मुनि के मौसा

1. एक भाग वृक्ष को दिया गया जिसने गोंद का रूप धारण कर लिया।

2. दूसरे भाग को नदियों को दिया गया जिसने फेन का रूप धारण कर लिया।

3. तीसरे भाग को पृथ्वी को दिया गया जिसने पर्वतों का रूप धारण कर लिया और

4. चौथा भाग स्त्रियों को प्राप्त हुआ जिससे वे रजस्वला होने लगीं।

इस प्रकार इन्द्र का ब्रह्महत्या के दोष का निवारण हो जाने पर वे पुनः शक्ति सम्पन्न हो गये किन्तु इन्द्रासन पर नहुष के होने के कारण उनकी पूर्ण शक्ति वापस न मिल पाई। इसलिये उन्होंने अपनी पत्नी शची से कहा कि तुम नहुष को आज रात में मिलने का संकेत दे दो किन्तु यह कहना कि वह तुमसे मिलने के लिये सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर आये। शची के संकेत के अनुसार रात्रि में नहुष सप्तर्षियों की पालकी पर बैठ कर शची से मिलने के लिये जाने लगा। सप्तर्षियों को धीरे-धीरे चलते देख कर उसने 'सर्प-सर्प' (शीघ्र चलो) कह कर अगस्त्य मुनि को एक लात मारी। इस पर अगस्त्य मुनि ने क्रोधित होकर उसे शाप दे दिया, “मूर्ख! तेरा धर्म नष्ट हो और तू दस हज़ार वर्षों तक सर्पयोनि में पड़ा रहे।” ऋषि के शाप देते ही नहुष सर्प बन कर पृथ्वी पर गिर पड़ा और देवराज इन्द्र को उनका इन्द्रासन पुनः प्राप्त हो गया।




प्राचीन भारतीय टैरो कार्ड

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द एम्परर

द हेरोफंट

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